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Ghalib Birth Anniversary: शायरी ही नहीं, बल्कि खत–ओ–किताबत के भी उस्ताद थे ग़ालिब

Updated : Tue, 27 Dec 2022 01:03 PM

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयां और...। असद उल्लाह बेग खां यानि मिर्जा गालिब पर यह बात सटीक बैठती है। उर्दू शायरी के साथ ही मिर्जा गालिब का खत लेखन भी बेजोड़ है। उनके खतों में उनके दिल के अरमान नजर आते हैं। खत लिखते समय वह स्थान, माहौल और समय का चित्रण भी करते थे, जिससे पढ़ने वाले को लगता था कि खत लिखने वाला सामने ही बैठा है।

मिर्जा गालिब द्वारा लिखा गए पत्र

गालिब अपने मित्रों, रिश्तेदारों और प्रशंसकों को नियमित तौर पर पत्र लिखा करते थे। उनके लिखे एक खत की बानगी देखिए, "लो भाई अब तुम चाहे बैठे रहो या जाओ अपने घर। मैं तो रोटी खाने जाता हूं। अंदर-बाहर सभी रोजेदार हैं। यहां तक कि बड़ा बेटा बाकर अली खां भी। सिर्फ मैं और मेरा एक प्यारा बेटा हुसैन खां रोजाखार हैं।' आगरा निवासी अपने दोस्त मुंशी शिवनारायण को गालिब ने 19 अक्टूबर, 1858 को एक खत लिखा था, जिसमें उन्होंने काला महल, खटिया वाली हवेली, कटरा गड़रियान का जिक्र किया है।

बचपन को याद कर गालिब लिखते हैं, "कटरे की एक छत से वो तथा दूसरे कटरे की छत से बनारस के निष्कासित राजा चेत सिंह के पुत्र बलवान सिंह पतंग उड़ाते और पेच लड़ाते थे।' एक अन्य खत में उन्होंने लिखा है, "...सुबह का वक्त है। जाड़ा खूब पड़ रहा है। अंगीठी सामने रखी हुई है। दो हर्फ लिखता हूं। आग तापता जाता हूं।' एक अन्य खत में वह लिखते हैं कि, वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (गदर) को भी उन्होंने देखा और भोगा था। उनके सामने ही दिल्ली का साहित्य समाज नष्ट हो गया। आठ सितंबर, 1858 को उन्होंने अपने मित्र हकीम अजहद्दौला नजफ खां को खत में लिखा था कि, "वल्लाह, दुआ मांगता हूं कि अब इन अहिब्बा (प्रिय) में से कोई न मरे, क्या माने के जब मैं मरूं तो मेरा याद करने वाला, मुझ पर रोने वाला भी तो कोई हो।'