'भेड़िया' का ट्रांसफॉर्मेशन अच्छा, पर कमजोर कड़ी बने कहानी और अधपके किरदार
Updated : Fri, 25 Nov 2022 08:02 AM

प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन मनुष्य जब प्रकृति से खिलवाड़ करता है, तब उसे गुस्सा आता है और प्रकृति यह गुस्सा सूखा, बाढ़, सैलाब, तूफान के रूप में व्यक्त करते हुए मनुष्य को सचेत करती है। फिल्म भेड़िया की काल्पनिक कहानी भी अरुणाचल प्रदेश के जंगल के अस्तित्व को लेकर है। जब भी मनुष्य इस जंगल को काटने या उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो विषाणु (भेड़िया) आ जाता है।
यह उन लोगों को अपना ग्रास बनाता है जो जंगल के दुश्मन होते हैं। प्रकृति है तो प्रगति है। फिल्म का यह संवाद पर्यावरण बचाने को लेकर है। निरेन भट्ट द्वारा लिखित कहानी के पीछे नेक मंशा है, लेकिन पर्दे पर वह समुचित तरीके से साकार नहीं हो पाई है।
अरुणाचल प्रदेश में सड़क बनाने का कांट्रेक्ट मिलने के बाद दिल्ली से भास्कर (वरूण धवन) अपने चचेरे भाई जनार्दन (अभिषेक बनर्जी) के साथ जाता है। वहां पर जोमिन (पालिन कबाक) और पांडा (दीपक डोबरियाल) भास्कर की मदद करते हैं। हालांकि, सड़क बनाने की राहें आसान नहीं होतीं।
आदिवासी समुदाय अपनी जमीन को छोड़ने और जंगल काटने को तैयार नहीं है। भास्कर को लगता है कि पैसों से सब कुछ खरीदा जा सकता है। वह कोशिश में लगा रहता है। इसी दौरान जंगल में भास्कर पर एक भेडि़या हमला करता है। उसे इलाज के लिए जानवरों की डॉक्टर अनिका (कृति सेनन) के पास ले जाते हैं, ताकि स्थानीय लोगों को इस हमले के बारे में पता नहीं चले।
इस हमले के बाद भास्कर के सूंघने और सुनने की क्षमता बढ़ जाती है। उसमें कई बदलाव होते हैं। अमावस की रात में वह भेड़िया बन जाता है। (जैसे महेश भट्ट की फिल्म जुनून में राहुल राय का किरदार जानवर बनता है)। वह लोगों को अपना शिकार बनाता है। उसके बदलाव का कारण क्या है? क्या वह वापस आम इंसान बन पाएगा या नहीं, आगे की कहानी इस संबंध में है।