खेल हैं बड़े−बड़े, 40 करोड़ कर दिए खर्च और सिर्फ 'कागजाें' में ही बना पर्यटन संस्थान
Updated : Wed, 23 Nov 2022 05:44 AM

डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. अरविंद दीक्षित ने संस्कृति भवन को बिना किसी संस्थान के प्रस्ताव के बनाया था। आपत्ति होने पर तीन महीने के लिए एक संस्थान कागजों में बनाया गया। कागजों पर ही निदेेशक और विषय विशेषज्ञ रखे गए। प्रस्ताव तैयार होने के बाद संस्थान कागजों में ही खत्म हो गया।
2017 में पूर्व कुलपति प्रो. अरविंद दीक्षित ने बाग फरजाना में ललित कला संस्थान वाली जमीन पर संस्कृति भवन का निर्माण कार्य शुरू करवाया था। शिवाजी मंडपम की तरह ही संस्कृति भवन का प्रस्ताव भी किसी विभाग या संस्थान से नहीं मिला था। 40 करोड़ रुपये खर्च करते हुए इस भवन का निर्माण कराने के दौरान आपत्तियां उठती रहीं। मालिकाना हक के कागज न होने पर एडीए ने नक्शा भी निरस्त कर दिया। नोटिस भी दे दिया। इन तमाम आपत्तियों को दबाने के लिए डा. दीक्षित ने इंस्टीट्यूट आफ होटल मैनेजमेंट एंड टूरिज्म के पूर्व निदेशक प्रो. लवकुश मिश्रा से प्रस्ताव तैयार करने को कहा। उनके मना करने पर 2019 में एक नए संस्थान इंटरनेशनल टूरिज्म एजुकेशनल इंस्टीट्यूट की स्थापना कागजों में की।
प्रो. विनीता सिंह को इसका निदेशक बनाया गया और जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर के प्रो. रामअवतार शर्मा को सलाहकार व विषय विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त किया। डिप्लोमा की फीस 75 हजार रुपये सालाना दिखाई गई। तीन महीने तक प्रो. शर्मा आगरा में रहे और संस्कृति भवन में इस नए संस्थान के लिए प्रयोगशाला व फर्नीचर संबंधित सलाह भी देते रहे। तीन महीने तक संस्थान के लिए सेवा देने के बाद प्रो. शर्मा वापस चले गए क्योंकि संस्थान सिर्फ कागजों में ही था और डा. दीक्षित का कार्यकाल भी खत्म हो गया था।