RG Kar Case: दुष्कर्म के दोषी को क्यों नहीं मिली फांसी...? न्यायाधीश अनिर्बाण ने 172 पन्नों की रिपोर्ट में बताई पूरी बात
Updated : Tue, 21 Jan 2025 10:31 PM

कोलकाता के सरकारी आरजी कर मेडिकल कालेज एवं अस्पताल में प्रशिक्षु महिला डाक्टर से दुष्कर्म एवं हत्या मामले में कोर्ट ने मुख्य आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अदालत के इस फैसले पर कई लोगों ने कहा कि दोषी को फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी। इस पर कोर्ट ने बताया है कि दोषी को फांसी की सजा क्यों नहीं दी गई।
सियालदह कोर्ट के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिर्बाण दास ने 172 पन्नों की अपने फैसले की कापी में महिला डाक्टर से दरिंदगी के अपराध के दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी में नहीं आने के कारणों का उल्लेख किया है, जिसमें दोषी को मृत्युदंड दिया जा सके।
दरअसल, कोलकाता के सरकारी आरजी कर मेडिकल कालेज एवं अस्पताल में प्रशिक्षु महिला डाक्टर से दुष्कर्म एवं हत्या के मामले में न्यायाधीश दास ने सोमवार को दोषी सिविक वॉलंटियर संजय रॉय को आजीवन कारावास (मृत्यु होने तक) की सजा सुनाई है।
दोषी को क्यों नहीं दी गई फांसी?
न्यायाधीश दास ने दोषी को मृत्युदंड न देने के पीछे एक कारण के रूप में 1980 के बच्चन सिंह बनाम पंजाब सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इस मामले में मौत की सजा के क्रियान्वयन के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के कुछ दिशानिर्देश हैं। मृत्युदंड के निष्पादन के लिए उस निर्देश में निर्धारित सख्त मानदंडों के साथ आरजी कर की घटना की तुलना नहीं की जा सकती। इसलिए इस अपराध को दुर्लभतम घटना नहीं कहा जा सकता।
न्यायाधीश दास ने कहा कि किसी अपराध को दुर्लभतम तभी माना जाएगा जब उसके बारे में कोई सवाल ही न हो। न्यायाधीश दास का मानना है कि मृत्युदंड केवल वहीं दिया जाना चाहिए जहां सुधार की कोई गुंजाइश न हो। न्यायाधीश दास ने अपने निर्देश में कहा कि इस मामले में सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है।
न्यायाधीश दास ने अपने फैसले में कहा कि उन्होंने सभी पक्षों के बयानों को बहुत गंभीरता से सुना है। साथ ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पोस्टमार्टम के दौरान ली गई तस्वीरों और आरजी कर के फोरेंसिक डाक्टरों की राय पर भी विचार किया गया।