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Lok Sabha Election 2024: बार-बार प्रत्याशी बदलकर चौंका रही हैं मायावती, UP में बिगड़ जा रहे बने बनाए समीकरण

Updated : Sat, 20 Apr 2024 02:05 AM

देश की राजनीति में जमीनी संघर्ष से पूरे पांच वर्ष दूर रहा बसपा का नेतृत्व ठीक नामांकन से पहले कुछ ऐसा कर देने की कोशिश में दिख रहा है जो चुनाव के परिणाम को बदल सकें। पार्टी का यह प्रयास उम्मीदवारों के चयन के स्तर पर उजागर तौर पर दिख रहा है। ब्रज क्षेत्र के आगरा और अलीगढ़ मंडल की आठ (आगरा, फतेहपुर सीकरी, मथुरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, अलीगढ़, हाथरस) में से चार सीटों (मथुरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, अलीगढ़) पर अंतिम समय में उसने जिस तरह अपने उम्मीदवारों का चेहरा बदला है, जानकार उसके पीछे की रणनीति और चातुर्य को समझने की कोशिश में हैं।

बसपा ने लोकसभा चुनाव में ब्रज मंडल में इससे पहले इतना बदलाव पहले कभी नहीं किया। विधानसभा चुनाव में जब भी बदलाव किए, मतदाताओं का भरोसा नहीं जीत सकी। इस बार पार्टी ने सबसे पहले फिरोजाबाद सीट पर उम्मीदवार की घोषणा की। सतेंद्र जैन सौली को उम्मीदवार तय किया गया। इस सीट पर सपा से अक्षय यादव उम्मीदवार हैं। भाजपा ने यहां से ठाकुर विश्वदीप सिंह को उम्मीदवार तय किया तो बसपा ने नामांकन के अंतिम दिन से पहले चौधरी बशीर को उम्मीदवार घोषित कर दिया। चौधरी बशीर बसपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं।

बसपा से मुस्लिम उम्मीदवार आने से यहां सपा के मुस्लिम मतों में विभाजन होने की संभावना है। ऐसी स्थिति में नुकसान सपा को होगा। मैनपुरी में भी बसपा ने ऐसा ही किया। यहां पहले उसने गुलशन देव शाक्य को प्रत्याशी बनाने की घोषणा की। सपा से यहां डिंपल यादव मैदान में हैं। भाजपा ने यहां से पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह को मैदान में उतारा। जयवीर सिंह के नाम की घोषणा के बाद बसपा ने अपना प्रत्याशी बदला और शाक्य की जगह इटावा जिले की भरथना सीट से पूर्व विधायक शिवप्रसाद यादव को टिकट दे दिया।

गुलशन देव शाक्य तो इस बदलाव से इतने नाराज हुए कि पार्टी छोड़कर सपा में शामिल हो गए हैं। इससे पहले बसपा, यहां से शाक्य उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारती रही है। बसपा से यादव के उतरने से यादव मतों में सेंधमारी की आशंका बड़ी है। हालांकि, डिंपल यादव और सपा ने रणनीतिकार इसकी आशंका से इन्कार कर चुके हैं। फिर भी शिवप्रसाद अगर यादव मतों में विभाजन कर पाए तो यह सीधा सपा का नुकसान होगा। बसपा ने सबसे पहले जिन सीटों पर प्रत्याशी की घोषणा की, उसमें मथुरा सीट भी शामिल थी।

इस सीट पर पहले कमलकांत उपमन्यु के उम्मीदवार होने की घोषणा की गई। उपमन्यु ब्राह्मण जाति से आते हैं। वह इससे पहले भी बसपा से वह लोकसभा का चुनाव लड़ चुके थे। पार्टी ने कुछ दिन बाद ही उपमन्यु का टिकट काटकर यहां जाट समुदाय से सुरेश सिंह को टिकट दिया है। इसी तरह, अलीगढ़ सीट पर पार्टी ने प्रत्याशी का बदलाव किया। बसपा ने पहले गुफरान नूर को प्रत्याशी बनाया था। चार दिन बाद ही पार्टी ने गुफरान का टिकट काटकर भाजपा से आए हितेंद्र कुमार उर्फ बंटी उपाध्याय को प्रत्याशी बना दिया। ब्राह्मण का कार्ड खेलकर बसपा को अप्रत्याशित होने की उम्मीद है।

बसपा की इस रणनीति को डा. भीमराव आंबेडकर विवि कश्मीरी गेट, दिल्ली के अकादमिक फेलो अरुण त्रिपाठी पार्टी का वैचारिक विचलन मानते हैं। उन्होंने कहा पार्टी की राजनीतिक विचारधारा पर कुछ लोगों की निजी विचारधारा हावी हो रही है। मतदाता का मायावती के साथ एक कमिटमेंट हैं। वह उसे भुनाना चाहती है। वह इस वोट बैंक के जरिए यथास्थिति बनाए रखना चाहती है। मूवमेंट से निकली पार्टी को डर सता रहा है। बहुजन समाज पार्टी के गठन से भी पहले बामसेफ से जुड़े रामअवतार पारा कहते हैं, यह बड़ी शक्तियों के प्रभाव में उठाया जा रहा बदलाव है। इसके पीछे पार्टी उम्मीदवार की जीत़ सहित कई गणित हैं।