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बदलते मौसम से सेहत, खेती समेत अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा असर, काम की उत्पादकता हो रही प्रभावित

Updated : Thu, 04 Jan 2024 04:28 PM

जलवायु परिवर्तन ने भारत समेत पूरी दुनिया में गर्मी बढ़ा दी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी)ने 2024 का पूर्वानुमान जारी करते हुए बताया कि भारत के लिए बीता साल 2023 अब तक का दूसरा सबसे गर्म साल रहा है। यह बयान लगातार जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दुष्परिणामों का प्रबल संकेत हैं। बढ़ते तापमान का असर अब हर जगह दिखने लगा है। इसकी कुछ बानगी आप रोजमर्रा की जिंदगी में महसूस कर रहे हैं। केदारनाथ धाम, गंगोत्री, हर्षिल समेत उत्तराखंड के तमाम इलाकों में पहाड़ बर्फबारी को तरस गए हैं। बढ़ती गर्मी की वजह से मक्का, धान और गेहूं की फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है। वैज्ञानिक मॉडलों के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि गर्मी से 2030 तक मक्के की फसल के उत्पादन में 24 फीसदी तक गिरावट और गेहूं की पैदावार में 2050 तक गेहूं की पैदावार में 23 फीसदी तक की कमी आ सकती है। सेहत के दृष्टिकोण से बात करें तो बढ़ती गर्मी कई बीमारियों को न्यौता दे रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन है कि बढ़ती गर्मी से हार्ट, रेस्पिरेटरी और लिवर से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। गर्मी और मौसम में परिवर्तन की विभीषिका के परिणामस्वरूप लोग विस्थापन को मजबूर है। तापमान में बढ़ोतरी जल, जंगल और जमीन को भी नुकसान पहुंचा रही है। मौसम के बदलते रूख का ही असर भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) की रिपोर्ट में साफ-साफ दिखता है। रिपोर्ट के मुताबिक पहली नवंबर 2023 से पहली जनवरी 2024 के बीच उत्तराखंड में 1006 आग लगने की घटनाएं हुई हैं। नेचर जनरल में छपी रिपोर्ट के अनुसार भारत में ग्लोबल वॉर्मिंग की मौजूदा स्थिति के अनुसार सालाना 100 बिलियन घंटों का नुकसान होता है।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाले भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के मुताबिक पहली नवंबर 2023 से पहली जनवरी 2024 के बीच उत्तराखंड में 1006 आग लगने की घटनाएं हुई हैं। पिछले साल की तुलना में, इसमें भारी वृद्धि देखी जा रही है, क्योंकि इससे पहले सालों में इसी अवधि के दौरान लगभग 556 आग लगने की घटनाएं हुई थी। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के अनुसार, इन सर्दियों के मौसम के दौरान, उत्तराखंड के उत्तरकाशी, नैनीताल, बागेश्वर, टिहरी, देहरादून, पिथौरागढ़, पौड़ी और अल्मोड़ा सहित लगभग सभी जिलों में जंगल की आग लगने की जानकारी मिली है। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के मुताबिक, पिछले दो महीनों में, हिमाचल प्रदेश में जंगल में आग लगने की सबसे अधिक यानी 1,199 घटनाएं हुई। इसके बाद उत्तराखंड में 1,006, मध्य प्रदेश में 577, कर्नाटक में 434 और महाराष्ट्र 445 का स्थान रहा।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय के एसोसिएट डायरेक्टर रिसर्च प्रोफेसर फिजा अहमद कहते हैं कि क्लाइमेट चेंज ने कृषि पर बड़ा प्रभाव डाला है। इससे मक्का जैसी फसल हर हाल में प्रभावित होगी क्योंकि वे तापमान और नमी के प्रति संवेदनशील हैं। उनके अनुमान के मुताबिक 2030 तक मक्के की फसल के उत्पादन में 24 फीसदी तक गिरावट की आशंका है। गेहूं भी इसकी वजह से काफी प्रभावित हो रहा है। वह बताते हैं कि अगर तापमान में चार डिग्री सेंटीग्रेड का इजाफा हो गया तो गेहूं का उत्पादन पचास फीसद तक प्रभावित हो सकता है।

इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक नरेश कुमार कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते असमय बारिश, बाढ़ और सूखे जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। मौसम में इस बदलाव का असर खेती पर भी पड़ा है। कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मॉडलों पर किए गए अध्ययन के मुताबिक मौसम में बदलाव के चलते 2050 तक गेहूं की पैदावार में 23 फीसदी तक की कमी आ सकती है। वहीं 2080 तक गेहूं की पैदावार 25 फीसदी तक गिर सकती है। गेहूं की पैदावार में गिरावट की सबसे बड़ी वजह फरवरी के महीने में तापमान सामान्य से अधिक रहना है। वैज्ञानिकों के मुताबिक फरवरी के महीने में दिन के तापमान में 3 डिग्री तक और रात के तापमान में 5 डिग्री तक की बढ़ोतरी देखी गई है। फरवरी का महीना गेहूं की फसल के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस महीने जनवरी और फरवरी में ही गेहूं की फसल में बालियां आती हैं और उनमें दाने भरते हैं। गर्म हवाओं के चलते ये गेहूं के दाने सूख जाते हैं जिससे फसल की उत्पादकता पर असर पड़ता है।