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Tripura का परिणाम तय करेगा कांग्रेस के गठबंधन का भविष्य, BJP के खिलाफ मोर्चे को 2024 तक बनाए रखने की चुनौती

Updated : Tue, 14 Feb 2023 04:32 PM

त्रिपुरा में चुनाव प्रचार का शोर मंगलवार की शाम थम गया। दो दिन बाद मतदान होना है। मात्र 60 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए होने जा रहे इस चुनाव का परिणाम विपक्षी एकता के रोडमैप का आधार तय कर सकता है। ऐसे में इस छोटे से राज्य की राजनीति का राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रभाव पड़ना तय है। कांग्रेस और वामदलों ने जिस तरह बंगाल के परिणाम की अनदेखी कर त्रिपुरा में भाजपा के विरुद्ध मोर्चा बनाया है, उसे लोकसभा चुनाव तक बनाए-बचाए और टिकाए रखने की चुनौती होगी। इस कसौटी पर बिहार-महाराष्ट्र जैसे राज्य भी होंगे, जहां सत्ता के लिए विचारधारा से समझौता कर इस तरह के गठबंधन हुए हैं।

चुनाव की घोषणा होने के बाद हुए एक

चुनाव की घोषणा से पहले तक त्रिपुरा में वामदलों और कांग्रेस में महासंग्राम की स्थिति थी। कार्यकर्ता और नेता आपस में भिड़ रहे थे। जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई दोनों एक हो गए। ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या शीर्ष स्तर पर गठबंधन के बाद कार्यकर्ता भी एक-दूसरे के साथ आ चुके हैं। अगर ऐसा हुआ तो लोकसभा चुनाव में भी दोनों दलों के एक मंच पर आने की बात को बल मिल सकता है। अगर नहीं हुआ तो बंगाल के बाद त्रिपुरा का संकेत भी साफ निकलेगा। ऐसा ही सबक यूपी में भी अखिलेश यादव को मिल चुका है। वर्षों तक बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी एक-दूसरे के प्रबल विरोधी रहे, परंतु 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर लिया। परिणाम ने अखिलेश की आंखें खोल दी। उन्होंने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ बसपा से भी पिंड छुड़ा लिया।

कांग्रेस का हुआ था सूपड़ा साफ

बंगाल में कांग्रेस और माकपा कभी राजनीतिक शत्रु थीं। ममता बनर्जी ने जब तृणमूल कांग्रेस बनाई तो कांग्रेस हाशिये की ओर बढ़ने लगी। बाद में वामदल की सरकार बनी और तृणमूल कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल बन गई। इसी बीच भाजपा के विरोध के नाम पर कांग्रेस धीरे-धीरे वामदलों के करीब आती गई। 2004 के बाद केरल के अलावा हर जगह कांग्रेस गाहे-बगाहे वामदलों से गठबंधन करती रही। असर दोनों पर पड़ा। दोनों का दायरा सिमटता चला गया। पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन के बावजूद वामदलों और कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका।